पड़ोस में झांकने की आदत ने हमको..हमही से जुदा कर दिया।

पड़ोस में झांकने की आदत ने हमको..हमही से जुदा कर दिया।
एस.एन.लाल
लाइट नहीं आ रही है, कम्प्लेन नहीं, बस पड़ोसी के यहां झांका, वहा भी लाइट नहीं... बस तब सुकून मिल जाता है। पड़ोसी के यहां क्या है..जो हमारे पास नहीं...बस इसी की फिक्र..!, हमारे पास जब इतना पैसा नहीं होता कि पड़ोसी की बराबरी करें, तो हम भ्रष्टाचारी बन हो जाते है...। पर हम ये नहीं सोचते पड़ोसी के पास पैसा आता कहां से है, वह कर्ज़ ले रहा है या वह चोरी कर रहा है..! 
यही नहीं नाली और बच्चों की लड़ाई को लेकर भी हम आये दिन पड़ोसी से लड़ बैठते हैं। एस.एन.लाल
अगर हमारा दिया हुआ कोई वरकर पड़ोस में काम कर रहा है...और पड़ोस उस वरकर को परेशान करता है...! और मेरे पास कोई वरकर नहीं है...तो हम पड़ोसी के घर आने वाले मेहमानों को कुछ न कुछ परेशान करेंगे। यानि हमको बदला लेना है। कभी-कभी पड़ोसी का गुस्सा घर पर पत्नि और बच्चों पर भी निकाल लेते हैं। 
एस.एन.लाल
लेकिन अगर कोई पड़ोसी बहुत अधिक धनी है, हम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, तो जब वह हमको किसी फक्ंशन में बुलाता है... तो हम खुशी-खुशी दस लोगों को बताकर उसके घर जाते हैं...,अगर उसका बच्चा हमारे बच्चे को मार भी देता है...तो हम अपने ही बच्चे को समझाते है...''उससे दूर रहा करो'' पर उससे कुछ नहीं कहते। अगर वह धनी पड़ोसी हमारी नाली में अपनी नाली की गन्दगी भी बहाता है, तो हम खामोश रहते हैं। एस.एन.लाल
हम सिर्फ पड़ोसियों को देखते हैं....अपने घर को खुश करने के हिसाब से नहीं चलते...अपनी सीमा, अपने नियमों को ताक़ पर रख देते हैं। एस.एन.लाल
बस यही हाल हमारे देश का है, पड़ोसी को देखकर काम करता है...और कभी-कभी अपने ही लोगो को नुक़सान पहुंचाया जाता है...केवल पड़ोसी के कारण। हमारी कमी ये है कि हम अपना मेल मिलाते है..अपने से छोटे व बराबर वाले से, अपने से बड़े से नहीं...! जबतक हम अपने से बड़े से मेल नहीं मिलायेंगे...तब तक विकास के कोई माने नहीं...! एस.एन.लाल