नालन्दा विश्वविद्यायल को जिस तरह बदनाम करके जलवाया गया था
वही आज शायद...जहां जे.एन.यू. के साथ हो रहा है।
लेकिन शिक्षा के मूल अधिकारों पर हमला तो न किया जाये।
एस.एन.लाल
दुख जब होता है जब प्रोफसर, इजंीनियर और डाक्टर स्तर के लोग शिक्षा पर हमले का पक्ष लेते है, वह चाहे जे.एन.यू के आंदोलन का मसला हो, या बी.एच.यू के मुस्लिम प्रोफेसर का। एस.एन.लाल
बौद्वााचार्य शान्तनु स्वरुप जी ने तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ की किताब 'प्राचीन भारत का इतिहास' व भारतीय इतिहासकार आचार्य धर्म स्वामी की किताब 'भारत का इतिहास' के आधार पर बताया कि नालन्दा में प्रवेश लेने के लिए विश्वविद्यालय का द्वारपाल साक्षात्कार लेता था, जब उसके साक्षात्कार में छात्र पास हो जाता था, तब उसको विवि में प्रवेश मिलता था। मै ज़्यादा साफ शब्दों में नहीं कह सकता, इतिहास में मिल जायेगा। एस.एन.लाल
एक उच्च जाति और अमीर घर का व्याक्ति जब नालन्दा प्रवेश के लिए आया था, तो उसको द्वारपाल ने प्रवेश नहीं दिया..वह बोला मै बिना साक्षात्कार के अन्दर जाऊंगा, उसको नियम के विरुद्ध काम करने को द्वारपाल ने अन्दर न जाने दिया। तो नालन्दा को समाप्त करने को सौगप्ध ख़ाकर गया और नालन्दा को बदनाम करने लगा, जब कुछ सालों में नालन्दा को बदनाम कर दिया, फिर उसमें आग लगवा दी। नालन्दा के अन्दर की सारी पांडुलिपिया जल गयी। उसका अल्ज़ाम लगाया गया बख़्ितयार खिलजी पर, जबकि इतिहास के अनुसार वह नालन्दा गया ही नहीं था। खिलजी से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित की गयी। एस.एन.लाल
आज लोग अधिक ज्ञानी है इसलिए बदनाम करने के तरीक़ ढ़ूढ़े जा रहें है।
ये बात बस कबीर और तुसली के दोहे को अपने हिसाब से समझाने जैसा है। जैसे तुलसी का दोहा
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।
ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
जिसमें नारी को ढोल की मान्निद पीटने का कहा गया है, जिसके शाब्दिक अर्थ यही है, लेकिन कहा जाता है कि ''ये माने नहीं है, ये केवल उपमा है... ऐसा दोहे में नहीं कहां गया है।'' एस.एन.लाल
इसी तरह कबीरदास जी के दोहे को ले... जिसमें निर्रथक बात कहीं गयी है...इसको सभी मान रहे है, बोल रहे यही कहां गया हैे।
कांकर- पाथर जोड़ कर मस्जिद दिया बनाई
ता चढ़ मुल्ला बाग दें क्या बहरा हुआ खुदा ???
सबसे मुख्य बात ये है कि बाग (आज़ान) खुदा को सुनाने के लिए नहीं होती... पूजा (नमाज) करने के लिए लोगो को बुलाने के लिए होती है,...जैसे कुछ काम हो रहा हो..., लोगो को उस काम का ध्यान न हो..तो उनको आवाज़ देकर बुलाया जाता है..!,
लेकिन नहीं..., कबीर खुदा को ही..सही कह रहें है...!
अपने हिसाब से जो सही बैठे...बस वही दोहे के माने निकाल लिये। एस.एन.लाल
शिक्षा पर हमला देखे....आईएसएससी बोर्ड से कृष्णचन्द जी कहानी 'जामुन का पेड़' हटा दी गयी, कृष्णचन्द्र को 1961 ई0 में पद्भूषण सम्मान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उनकी कहानी सीधे प्रशासन व सरकार के कामकाज के तरीक़ो को उजागर करती थी। उस सच को न कांग्रेस ने दबाया, न और सरकारों ने, लेकिन आज सरकार को पता नहीं उस कहानी में क्या दिखा...जो डर के मारे कहानी ही कटवा दी ! एस.एन.लाल
इसी तरह उ0 प्र0 के पीलिभीत जिला में सरकारी प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर फुरक़ान अली का निलम्बन इसलिए कर दिया गया क्योंकि वह 18 अक्टूबर को स्कूल में इक़बाल की नज़्म 'लब पे आती है दुआ बन कर तमन्ना मेरी।, जिन्दगी शमा की सूरत हो खुदाया मेरी।। नेता और डी.एम. उस कविता (नज़्म) के माने नहीं समझ पायें..ये उनकी कमी है...सज़ा मिली मास्टर को। जब कि नज़्म में बच्चें निराकार भगवान (खुदा) से अपने उज्जवल भविष्य की प्रार्थना कर रहें है, सिर्फ भाषा का अन्तर है...हमको गॉड कहने में कोई ऐतिराज़ नहीं लेकिन खुदा कहने में दिक्कत है। एस.एन.लाल
इसी तरह बी.एच.यू के संस्कृत के प्रो0 फिरोज़ खान का संस्कृत पढ़ाने में विरोध, इसमें फिरोज़ की क्या ग़ल्ती, बी.एच.यू को नौकरी का विज्ञापन देते समय लिख देना चाहिए था, कि केवल सनातन धर्म के लोग ही प्रार्थनापत्र दे सकते हैं। जबकि बीएचयू में ही ऋषि कुमार शर्मा 11 वर्षो से उर्दू पढ़ा रहे हैं। और पूरे देश में देखें तो इलाहाबाद विवि. मे डा0 संजय उर्दू पढ़ाते हैं।, ए.एम.यू में संस्कृत विभाग के चेयरमैन प्रो0 मोहम्मद शारिफ हैं।, डा0 मिथुन कुमार दिल्ली विवि मं उर्दू पढ़ाते हैं।, बरेली कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डा शैव्या त्रिपाठी उर्दू पढ़ाती हैं।, बरेली के इस्लामिया गल्र्स इंटर कॉलेज में डॉ साईमा अजमल संस्कृत पढ़ाती हैं। एस.एन.लाल
हर चीज़ पर हमला होते-होते...अब शिक्षा पर हमला बोला गया...यानि जड़ ही ख़त्म करो ग़रीब पढ़ेगा नहीं, तो आवाज़ कहां से बुलन्द करेगा और देश में ग़रीब कौन-कौन हैे...ये सब जानते हैं!
वरिष्ठ पत्रकार कुमार नगेन्द्र सिंह के अनुसार ''सरकार को जे.एन.यू. से बजट की परेशानी नहीं, परेशानी यह है कि जे.एन.यू. के छात्र लोकतन्त्र का पूरा लाभ उठाते हुए सही मुद्दो पर आंदोलन करके जनता को जागरुक कर देते हैं। इसलिए सरकार की आखों में खटकते हैं।'' एस.एन.लाल
असल में जे.एन.यू का आंदोलन ही ऐसा है जो सारे आंदोलन कृषक, श्रमिक, दलित, नारीवादी, भाषायी व क्षेत्रीय आंदोलन की आवाज़ बनता है, क्योंकि इन्ही के बच्चे यहां पढ़ते है जोकि अधिक फीस देने की स्थिति में नही है, सरकार जे.एन.यू के आंदोलन को कुचल कर बहुत कुछ साधना चाहती है।
शिक्षा जो देश के युवा का मूल अधिकार है, उसके लिए सरकार पास पैसा नहीं, लेकिन बड़े उद्योगपतियों का कर्ज़ा माफ करने और अपना प्रचार करने के लिए करोड़ो-अराबो रुपया है। सामने की फिगर ये है कि जीयो, वोडाफोन व एयरटेल को हम 4200 करोड़ की छूट दे सकते हैं, लेकिन शिक्षा में कुछ ऐसा नहीं कर सकते....! एस.एन.लाल
जे.एन.यू से किसी प्रकार की चिढ़ है, तो शिक्षा पर हमला करने के बजाये। हर राज्य में जे.एन.यू की तरह की ए.बी.यू (अटलबिहारी बाजपेई यूनीवर्सी) या एन.डी.एम.यू.(नरेन्द्र दामोदरदास मोदी यूनीवर्सी) खेाल देते... जहां अपनी मानसिकता के लोग पैदा होते। वहां जे.एन.यू. की तरह वैश्यायें और आतंकवादी न पैदा हो, लेकिन शिक्षा प्राप्त करने की आज़ादी तो दें।
मगर इन पढ़े-लिखें भक्तो को इधर नज़र नहीं आता, आता भी होगा..., तो इनको वह बात करना है, जो इनका अपने पूजनीय नेता जी कहे, जिनको भगवान और राष्ट्रीय का दर्जा दे रखा है।
एस.एन.लाल
नालन्दा विश्वविद्यायल को जिस तरह बदनाम करके जलवाया गया था