जीत तो मुसलमानों की हुई है, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में
'राममन्दिर तोड़ा गया' ये झूठ आस्ट्रेलिया के पादरी ने 1740 से 1785 ई0 में भारत भ्रमण के समय बोला था...!
(यकजहती टाइम्स समाचार) एस.एन.लाल
देखे, जीत उसी को कहा जाता, जहां उद्देश्य की जीत होती है, आदलत में या मैदान में जीत केवल दिखावे की होती है। मुस्लिम मानते है और ओलेमा अपने बयानों और मजलिसों में भी कहते है कि 1 लाख 24 हज़ार संदेशवाहको (पैग़म्बरो) में जहां ईसाईयों के हज़रत ईसा है, यहूदियों के हज़रत मूसा है, वही सनातन धर्म के मानने वालों के हज़रत राम भी है। यानि हर उस जगह संदेशवाहक भगवान (खुदा) ने भेजा जहां बुराईयों ने जन्म लिया। तो सुप्रीम कोर्ट ने दुनियाबी स्तर पर विवादित ढ़ाचें पर एक पैग़म्बर का घर बनाने का रास्ता साफ किया है यह खुशी की बात है। एस.एन.लाल
सबसे ख़ास मुसलमानों की जो सुप्रीम कोर्ट में जीत हुई है, वह 'राममन्दिर तोड़कर मस्जिद बनी' झूठ पर से पर्दा हटने की, जिस झूठ के आधार पर आज़ादी के बाद से सरकारे बनती-बिगड़ती रही और इस झूठ के सहारे वोट बनाने का काम जारी रहा। इसी झूठ के सहारे नफरतो की दिवार इतनी बुलन्द कर दी गयी, कि गंगा-यमुनी संस्कृति भी अपनी पहचान खोने लगी। इसी झूठ की बिना पर 'बाबरी की औलाद' जैसी गालियों से मुसलमानों को पुकारा जाने लगा। जाहिल ही नहीं, पढ़े-लिखे और राजनेता तक उसी झूठ को आगे बढ़ाते रहे। पिछले वर्ष 2018 ही में राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा ने भी यहीं कहा कि मीर बाक़ी ने हिन्दुओं को अपमानित करने और बाबर को खुश करने के लिए मन्दिर तोड़ा था। जिसको सुप्रीम कोर्ट ने कहा 'मन्दिर तोड़ने के कोई साक्ष्य नहीं मिले'। अब आगे भी ऐसे बहुत से झूठ है..., उन पर ध्यान देने की सरकारो को आवश्यकता है, नहीे तो कल वह भी नासूर बन जायेंगे। एस.एन.लाल
'राममन्दिर तोड़कर मस्जिद बनी' ये झूठ दरअस्ल आस्ट्रेलिया के पादरी फादर टाइफैन्थेलर ने 1740 से 1785 ई0 यानि 45 वर्ष भारत भ्रमण के समय अपनी डायरी में लिखा (अखिलेश बाजपेई अमर-उजाला 12 नवम्बर)। किसी रामभक्त या किसी देश-विदेश के इतिहासकार ने नहीं कहा था। इसी झूठ का लाभ उठाकर देश के भाई-चारे में ज़हर घोला गया। और इसका पूरा लाभ अंग्रेज़ो ने उठाया, क्योंकि अयोध्या विवाद 1853 ई0 से शुरु हुआ। 1853 में दंगा हुआ, 1859 में अंग्रेज़ो वहां बाड़ लगवा दी, फिर 1885ई0 में केस आदालत पहुंचा। 1883ई0 से पहले कोई मस्जिद-मन्दिर का विवाद के साक्ष्य नही मिलते। एस.एन.लाल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ऑरकेलॉजी सर्वे ऑफ इण्डिया (ए.एस.आई) की रिपोर्ट को भी आधार बनाया, जोकि हाईकोर्ट के आदेश पर 1976-77 ई0 में खुदाई हुई थी, जिसमें पुरातत्तवविद् बीबी लाल के नेतृत्व काम करने वाले के.के.मोहम्मद ही ने अवशेष को देखकर कहां था यहां पर विष्णु मन्दिर रहा होगा। फिर 2003 ई0 में भी मस्जिद टूट जाने के बाद कई स्थानों पर गहरी खुदाई हुई जहां से मन्दिर के अवशेष मिले। इसी ए.एस.आई की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि इस भूमि पर 12वीं सदी से 16वीं सदी के बीच इस भूमि पर कोई भी भवन होने के प्रमाण नहीं मिलते यानि जब मस्जिद बनी, तब वहां कोई भवन नहीं था। जो अवशेष मिले है, वह 12वीं सदी मन्दिर के हैं। एस.एन.लाल
लखनऊ में ठाकुरगंज क्षेत्र में कालीचरण स्कूल के नये भवन के पीछे अब बचे हुए लखौरी के बने हुए दो गुम्बन्ध दिखते है, जिसमें एक तो बिलकुल समाप्ती पर है दूसरा भी टूट चुका है। सिर्फ गुम्बन्द यानि पूरा भवन ज़मीन में दब गया। पता नहीं कितने वर्षो पुराना है। इसी प्रकार कोई मन्दिर 400 वर्षो में भूमि के नीचे दब गया होगा। वह राम मन्दिर भी हो सकता है और बौद्ध लोगो के दावे के अनुसार बौद्ध मन्दिर था। लेकिन मस्जिद के लिए कोई मन्दिर नहीं तोड़ा गया...। ये सुप्रीम कोर्ट ने कहां जिसपर हर हिन्दुस्तानी को विश्वास है। क्या अस ओदश के आने के बाद अब दिलों में भरी हुई वह नफरते कम हो जायेगी !..., भगवान करे ऐसा हो जाये। फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहां 1992 ई0 में ढ़ाचा गिराना ग़ैर कानूनी है, क्यों 26 जनवरी 1950 से लागू भारतीय संविधान के अनुसार जो पुराने भवन है, उसकी रक्षा संविधान की है। 1949 ई0 में मस्जिद के अन्दर मूतिर्यो रखने भी को भी ग़ैर कानूनी बताया, जोकि झूठ ये उड़ाया गया था कि वहां भगवान की मूर्तिया भूमि से प्रकट हुई है, और 1949 ई0 में नमाज़ पढ़ी जाने को भी स्वीकारा। एस.एन.लाल
बाबरी मस्जिद के फैसले की कई बार कोशिश हुई, दिसम्बर 1961 ई0 में मुसलमानों ने कहा कि अगर मन्दिर तोड़ने वाली बात साबित कर दे, तो हम मस्जिद पर दावा छोड़ देंगे, क्योंकि फिर हमारी नमाज़ पढ़ना बेकार होगी। 1986 ई0 में समाधान निकाला गया था, कि मस्जिद का स्थानानतरण कर दिया जाये और वहां मन्दिर बन जाये, तो आर.एस.एस के प्रमुख ने उस समय कहां था हमको मन्दिर नहीं बनाना है सत्ता हासिल करना है। (शीतला सिंह सम्पादक जनमोर्चा)। 1990 ई0 में समाधान निकला कि बिना ढ़ांचे को छेड़े, बीच में दीवार उठाकर दोनो धर्मो के बीच बांट देना चाहिए, ये काम वी.पी.सिंह ने कृष्णकान्त को दिया, ये काम होता, उससे पहले ही वी.पी.सिंह की सरकार गिर गयी। उसके तुरन्त बाद चन्द्रशेखर ने समाधान करना चाहा और शायद वह कर भी ले जाते, लेकिन राजनीति की उठा-पटक के चलते कांग्रेस ने समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार भी गिरा दी। एस.एन.लाल
7 जनवरी 1993 ई0 में अन्ुाछेद 143 का प्रयोग करते हुए सरकार ने राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट से प्रश्न किया, क्या मस्जिद से पहले वहां कोई धार्मिक स्थल था। सरकार की ओर से कहां गया कि प्रश्न के उत्तर के आधार पर फैसला किया जायेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 1994ई0 में प्रश्न वापस करते हुए कहां कि ये राजनीतिक प्रश्न है, इस प्रश्न का जवाब नहीं दे सकते। 2001 ई0 में बाइजेई सरकार ने अयोध्या सेल बना दी, जिसके मुखिया अशोक सैकिया को रखा गया और समाधान रखे गये कि मन्दिर-मस्जिद पास-पास बने, या मन्दिर यहीं बने, मस्जिद पास ही आरा में बना दिया जाये, और साथ में शर्त रखी गयी कि इसके बाद मथुरा-काशी के दावों को छोड़ना होगा जिस पर विश्व हिन्दू परिषद तैयार नहीं हुआ। एस.एन.लाल
कोशिशे होती रही समझौते की, फिर मुसलमान आदलत के फैसले पर ही अड़ गया, 2010 ई0 में हाईकोर्ट का फैसला आया, जिसको किसी ने न मानकर सुप्रीम कोर्ट में केस डाल दिया गया। 2018 में श्रीश्री रविशंकर की ओर से समझौते की कोशिश हुई, वही जहां एक और मुसलमान अधिकतर कोर्ट के फैसले को ही अहमियत दे रहे थे, वही आर.एस.एस. के कृष्ण गोपाल ने कहां हमारा उद्देश्य राम मन्दिर बनाना नहीं, राम मन्दिर तो घर-घर में है, हमारा उदद्देश्य है हिन्दू स्वाभीमान को जगाना । एस.एन.लाल
बहरहाल मै समझता हूॅ, मुसलमानों की जीत हुई है, हमको सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आदर करना होगा, क्योंकि उसने उस झूठ(राममन्दिर तोड़कर मस्जिद बनी) से नकाब नोंच फेकी है, जिस झूठ के सहारे, देश में इन्सानों को बांटा गया और इन्सानों को काटा गया और अब आगे के झूठों पर निगाह रखना है। मुसलमानों को ये 5 एकड़ ज़मीन लेकर कोई कालेज खोल देना चाहिए, जहां सभी धर्म के बच्चे शिक्षा प्राप्त करें, और एक नई सोच के साथ एक नये भारत का निर्माण करे और यह यादगार कालेज बनकर खड़ा हो। एस.एन.लाल
जीत तो मुसलमानों की हुई है, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में